डायरी 2019

नमस्ते मित्रों! मेरा नाम डायरी है। मैं किसी भी सामान्य काॅपी कि तरह हूँ, पर मेरी खासियत यह है कि मैं लोगों के दिलों के ज़्यादा करीब रहता हूँ। मेरा नाता किसी एक इंसान से जुड़ जाता है, और फिर मैं उनके सीने से चिपका रहता हूँ। कई बार तो बाकी दुनिया को मेरे वजूद कि खबर ही नहीं होती! और कई बार, मेरे मालिक के कुछ निजी रिश्तेदार मुझ से हू-बहू होना अपना अधिकार समझते हैं, और मेरे मालिक की अनुमति के बिना ही मुझे पढ़ लेते हैं।

यह तो था मेरी प्रजाति का परिचय। चलिए मैं अब अपने बारे में कुछ बता दूँ। मेरा जन्म अगस्त 2018 में हुआ था। मैंने अपने जीवन के पहले चार मास एक दुकान में बिता दिए, एक इंसान की चाह में, जिसकी वेष-भूषा का मुझे कोई अनुमान न था। दिसंबर आते-आते मेरे सारे भाई-बहन मुझे अलविदा कह चुके थे। मैंने एक घर मिलने की उम्मीद छोड़ ही दी थी, जब मेरी मुलाकात उस से हुई।

श्री मान का नाम तो मुझे अभी ज्ञात नहीं था, परंतु उस की आँखो में एक चमक दिखाई पड़ी। वह अपने मन में अपनी अगली डायरी की एक पूर्ण छवि लाया था। उस ने मुझे परखा, मेरे पन्ने पलट-पलट कर जांच करी, और उस के मुख पर एक मीठी मुस्कान रूप लेने लगी। मुझे अपनी बढ़ाई करने में कोई शर्म नहीं। मेरे पास वे सब ख़ूबियाँ थी जिस की तलाश में वह व्यक्ति दुकान में आया था – रविवार के लिए पूरे पन्ने, बुकमाॅर्क के लिए एक सुंदर गुलाबी रस्सी, चमड़े की चादर, और हर महीने से पहले एक विस्तृत प्लैनर। मुझे विश्वास था कि आज मैं अपने नए घर की ओर सफ़र तय करूँगा ही। इस सब के बाद भी उसने मुझे वापिस रख दिया। मेरा दिल घबराया, और मुझे लगा कि मेरे साथ छल हुआ है। मैं उस को देखता रहा। उसने एक-एक कर के पाँच और डायरियों से आँखें लड़ाई। सच कहूँ तो वह मुस्कान मुझे फ़िर से नज़र नहीं आई। मैं दिल थाम के बैठा रहा, उस का पीछा करता रहा। अचानक से उस के चहरे पर एक बदलाव आया, जैसे कि उसने निर्णय ले लिया हो। वह मेरी ओर एक बार फ़िर आया, और इस बार मेरी भावनाओं के साथ खेल नहीं खेला। मुझे उठाया, और दुकानदार को मेरी कीमत दे कर घर की ओर बढ़ गया।

मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था! उस के हाथों में मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी अनुभवी व्यक्ति के पास जा रहा हूँ, जो मुझ से रोज़ बातें करेगा, मुझे अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाएगा। मेरी भविष्यवाणी सही निकली, क्योंकि घर पहुँचते ही उसने एक पेन निकाला, और मुझे अपना परिचय दिया:

“प्रिय डायरी,
“मेरा नाम अशोक है। मैं एबीसीडी काॅलेज में बी. टेक. डिग्री के तीसरे वर्ष का छात्र हूँ। मेरी ज़िंदगी में तुम्हारा स्वागत है।”

अशोक जी! मुझे भी आप से भेंट कर के अच्छा लगा!

अशोक जैसा दोस्त सारी डायरियों को मिले! उस के अनुशासन का कोई जवाब नहीं! पिछले तीन महीनों में २-३ दिन से ज़्यादा दिन नहीं होंगे, जब मेरी उस से बात न हुई हो। रोज़ रात खाने के बाद वह मेरे पास बैठता है, और मुझे अपने दिन की दास्तान सुनाता है। उस के जीवन में इतने सारे शौक हैं कि एक-एक की ख़बर रखना हम दोनों के लिए मुश्किल पड़ जाता है, पर मेरी याददाश्त के कारण वो भी सारी चीज़ों का ख़्याल रख पाता है। वह पढ़ाई में अव्वल है, फुटबाॅल टीम का कप्तान है, और काॅलेज की सब से ख़ूबसूरत लड़की, कामिनी, उसकी प्रेमिका है।

अशोक प्रातः ६ बजे मैदान पहुँच जाता है। वह ही तो अपनी टीम का मार्गदर्शक है, उसके बिना तो उन सब के पास कोई दिशा नहीं। उसके बाद वह नाश्ता कर के कक्षा में जाता है। अशोक अपने खाने का पूरा ध्यान रखता है, और आज कल के बच्चों की तरह “जंक” में पैसे बर्बाद नहीं करता। उसे गणित का खूब चाव है, और गणित के अध्यापक को उससे। अशोक से जलतें है बाकी सब विद्यार्थी, क्योंकि वे अशोक को मात नहीं दे सकते। अशोक उनके बारे में तो सोचता भी नहीं – वह अपना ध्यान अपने मित्रों पर देता है, जो खुशी-खुशी उससे पढ़ने आते हैं। वह सप्ताह में दो दिन पास कि बस्ती में जाकर बच्चों को भी पढ़ाता है। जीवन के पल पल का सही उपयोग तो कोई उससे सीखे।

सब अशोक से बहुत प्रेम करते हैं, खास कर के कामिनी। वह रोज़ उसके फेसबुक पर आयी तस्वीरों की व्याख्या मुझे देता है। मैं कामिनी की सुंदरता से अपरिचित नहीं – अशोक ने उसकी एक तस्वीर मुझे दी हुई है संभालने के लिए। कामिनी जीव विज्ञान की छात्रा है, और इस लिए अशोक और वह कक्षा में साथ नहीं रह पाते, मगर अशोक उसके लिए दिन में समय ज़रूर निकलता है। अशोक खुद को शाहरुख, और कामिनी को काजोल बोलता है! मुझे लगता है कि उनकी जोड़ी को कोई कठिनाई नहीं आ सकती।

जून एक को पहली बार मैंने एक नया शब्द सुना: ‘डोटा’, और तब से लगता है कि कुछ और बचा ही नहीं है। जिस तरह से वह डोटा की बात करता है, लगता है वह नया खिलाड़ी तो नहीं है इस खेल का।

अब तो मैं अशोक के कण कण को समझ चुका हूँ। आज कल उसकी ज़िंदगी में कुछ रोमांचक चल भी नहीं रहा। कभी-कभी ऐसा लगता है कि एक लेखक के जीवन में काफ़ी ऊँच-नीच होती रहती है। कहाँ तो कई दिनों अशोक कलम से कामिनी के राजा रवी वर्मा जैसे चित्र बना देता था, और कहाँ कई हफ़्ते बीत गए उसके एक भी ज़िक्र के बिना।

कई दिनों तो अशोक ने डोटा के बारे में ही मेरा पूरा पन्ना भर दिया। कुछ दिन ऐसे भी बीते हैं जब अशोक ने लिखा: “कल डोटा खेलने के कारण डायरी नहीं लिख पाया।” अशोक, यह तो ठीक बात नहीं हुई!

 मुझे अशोक की ज़ुबान के बारे में भी सब पता चल गया है। पिछले ३० दिनों में उस ने १५ पिज़्ज़ा, १३ पास्ता, २८ बोतल कोका-कोला और ३५ आलू के परांठे खाए। खाने का इतना शौकीन है, पर फिर मुझे दुख से बताता है कि उसे कुछ पकाना नहीं आता। उसके पेट में गए सारे पकवान का श्रेय ज़ोमाटो और बाॅक्स-एट को जाता है। अशोक ने न सिर्फ़ यह सब खाया, पर आश्चर्य की बात यह है कि उसने मुझे एक-एक चीज़ का हिसाब भी दिया। वह नियमित तौर पर मुझे कहानियाँ तो सुनाता है, पर सच कहा जाए तो मैं अब थोड़ा ऊब चुका हूँ। रोमांच और रोमांस की कमि लगने लगी है।

लो, रोमांच की कमी का उद्धारण क्या दे दिया, अशोक तो मेरे पास एक तूफ़ान ले आया! कामिनी और अशोक के रिश्ते में भेद आ गए हैं। कामिनी ने अशोक को, “मेरा पीछा छोड़ दो!” कहा! कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? यह सब क्या हो रहा है? अशोक को संदेह है कि कामिनी और सारे अध्यापक उसके ख़िलाफ़ एक षडयंत्र रच रहें हैं, और बदले की भूख में वह उसको फेल करने का भी प्रयास करेंगे। अशोक को कामिनी ने फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया, और मुझ से भी कामिनी की तस्वीर छीन ली गई! क्या इस दुनिया में यादें रखना भी एक गुनाह है?

यह सब मेरी समझ से बाहर है। मैं दावा करता हूँ कि अशोक से अधिक रहस्यमय व्यक्ति कोई नहीं। मेरा सफर लगभग खत्म होने वाला है, और मैं अशोक को गहराई से समझ नहीं पाया। कहां गया वह अशोक जो रोज़ दस नई चीज़ों में भाग लेता था?

मुझे आज एक चिट्ठी मिली, जो कि अशोक को काॅलेज से मिला है। मैं क्या ही बताऊँ, आप खुद देख लीजिए:

अशोक सिंह,
कमरा १९०, होस्टल १
दिनांक: नवंबर २०, २०१९
अशोक जी,

आपके ख़िलाफ़ कम्पलेंट जारी की गई है। आप पर आरोप है कि आपने अपनी सहपाठी मिस कामिनी को उत्पीड़ित किया है। उनकी जानकारी और अनुमति के बिना आपने उन की तस्वीरों को छापा। आपने उनका हर कक्षा में पीछा किया, और उन्हें असभ्य नामों से पुकारा। आप के गणित अध्यापक ने आपको क्षमा मांगने के लिए कहा तो आप ने उन पर भी अप शब्दों का प्रयोग किया। कृपया यह समझ लें कि हम इस काॅलेज में औरतों के साथ हिंसा को बहुत गंभीरता से लेते हैं।

इस पत्र को अपनी आखिरी चेतावनी समझिए। आपका शैक्षिक रिकाॅर्ड भी अच्छा नहीं है, और आप पहले ही ३ विषयों में असफल हो चुके हैं। आपका मामला देखते हुए हम नें नीचे दिए गए निर्णय लिए हैं:

१. यदि आप मिस कामिनी के २०० मी. से ज़्यादा करीब आए
२. यदि आप आगे और किसी भी विषय में असफल हुए, तथा
३. इस साल के अंत तक पिछले विषयों में सफल न हुए

तो आप को काॅलेज से निष्कासित कर दिया जाएगा। आप से अनुरोध है कि २ दिन में मिस कामिनी के लिए एक क्षमा पत्र लिखें, तथा उनकी कोई भी वस्तु, फ़ोटो आदि काॅलेज के कार्यालय में यह सब जमा कर दें।

सुरेंद्र शर्मा,
डीन
एबीसीडी काॅलेज,
नई दिल्ली

मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा! क्या मैं ठीक पढ़ रहा हूँ? क्या यह चिट्ठी मेरे मित्र अशोक को ही लिखी गई है? किस पर भरोसा करूँ मैं? क्या अशोक मुझ से झूठ बोल रहा था अभी तक? क्या कामिनी उसे पसंद भी करती थी? अगर यह झूठ है, तो क्या अशोक ने कभी मुझे कोई सत्य भी बोला है?

यदि मेरे पास अशोक से बात करने का कोई तरीका होता, तो मैं उससे यह सब सवाल पूछता। पर, मैं सिर्फ उम्मीद कर सकता हूँ कि वह अपनी सफाई मुझे खुद देगा। मुझे जान ने का हक़ है, कि क्या मेरे साथ धोखा हुआ?

पर लगता है मेरी आशाओं को उनकी मंज़िल नहीं मिलेगी। सफाई तो छोड़ो, जब से यह पत्र मुझे दिया गया, अशोक ने मुझ से बात करना ही छोड़ दिया। कहाँ हो तुम, अशोक? आज दिसंबर ३१ है। क्या तुम मुझे आज भी नहीं मिलोगे?

(१६३३ शब्द)
अपडेट: मुझे इस कहानी के लिए अपने काॅलेज के हिंदी दिवस में प्रथम पुरस्कार मिला!

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